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मनोवैज्ञानिक इरेक्टाइल डिसफंक्शन को मात देने के लिए टिप्स

यौन-रोगों में इरेक्टाइल डिस्फंक्शन पुरुषों में होनेवाला एक अत्यन्त ही महत्वपूर्ण और गम्भीर रोग है और जो कोई भी व्यक्ति इस गम्भीर यौन-रोग की चपेट में आ जाता है उस व्यक्ति को यह रोग बहुत ही बुरी तरह अन्दर तक खोखला करके रख देता है और वह व्यक्ति लाखों कोशिशों के बावजूद चाहकर भी अपने जीवन में अपनी महिला पार्टनर के साथ किसी भी स्थिति में यौन-सम्बन्ध स्थापित करने में सर्वथा नाकाम हो जाता है जिसकी वजह से उसका अपनी जिन्दगी पर से विश्वास उठ जाता है और उसकी जिन्दगी अत्यन्त ही नीरस हो जाती है.


किसी भी पुरुष के जीवन में जब किसी भी कारणवश उसके लिंग की नसों में पर्याप्त मात्रा में रक्त-संचार नहीं होता है तो उस व्यक्ति का लिंग लुंज-पुंज स्थिति में तनावरहित होकर प्रायः ढीली अवस्था में ही रहता है और इस अवस्था में वह व्यक्ति किसी भी स्थिति में लैंगिक रूप से उत्तेजित नहीं हो पाता है जिससे उस व्यक्ति का सम्पूर्ण आत्मविश्वास धूलि-धूसरित होकर रह जाता है और इस लैंगिक उत्तेजना के अभाव में वह चाहकर भी अपनी महिला पार्टनर के साथ यौन-सम्बन्ध स्थापित करने की स्थिति में नहीं रह जाता है और इस वजह से वह व्यक्ति घुट-घुट कर अपनी जिन्दगी जीने पर मजबूर हो जाता है.


वैसे तो ऐसी परिस्थितियां मुख्य रूप से अधिक उम्र के पुरुषों के जीवन में ही उत्पन्न होती रही है परन्तु आज की स्थिति इससे बहुत ही भिन्न है और बहुतेरे कारणों से यह रोग कम उम्र के लोगों को भी अपनी गिरफ्त में लेता चला जा रहा है जो एक बड़ी ही गम्भीर त्रासदी की ओर इशारा कर रहा है और अगर सही समय पर इसका उचित इलाज नहीं किया गया तो यह उस व्यक्ति के यौन-जीवन को बहुत ही बुरी तरह प्रभावित कर डालता है तथा इसके साथ ही व्यक्ति की बढ़ती हुई उम्र के साथ-साथ इसके प्रभाव में भी उत्तरोत्तर वृद्धि होती रहती है.


असंयमित जीवन-शैली, असंतुलित आहार-व्यवहार,अत्यधिक शराब का सेवन, धूम्रपान, ड्रग्स, प्रतिबंधित दवाओं का सेवन, अनावश्यक चिन्ता और व्यर्थ के तनाव की वजहों से भी व्यक्ति इस गम्भीर यौन-रोग की चपेट में आ जाता है तथा इसके साथ ही अत्यधिक मोटापा, मधुमेह, हृदय से सम्बंधित समस्याओं, उच्च रक्तचाप और मानसिक अवसाद के कारण भी यह गम्भीर यौन-रोग व्यक्ति को अपनी गिरफ्त में ले लेता है.


इरेक्टाइल डिस्फंक्शन जैसा गम्भीर यौन-रोग शारीरिक और मानसिक दोनों ही कारणों से किसी भी व्यक्ति के जीवन में उत्पन्न होता है. असंयमित जीवन-शैली और असंतुलित आहार-व्यवहार की वजह से व्यक्ति शारीरिक रूप से इस यौन-रोग की गिरफ्त में आ जाता है तथा अनावश्यक तनाव और व्यर्थ की चिन्ता करने की वजह से व्यक्ति मानसिक रूप से इस इस यौन-रोग की चपेट में आ जाता है.


मनुष्य अपने जीवन में बहुतेरे प्रकार की भ्रांतियों का शिकार होता है और इन भ्रांतियों की वजह से वह अनावश्यक रूप से काफी चिन्तित भी रहा करता है. अपनी विभिन्न प्रकार की चिन्ताओं में वह सबसे ज्यादा चिन्तित अपनी शारीरिक-संरचना के साथ ही अपने अंग-विन्यास और विशेषकर अपने प्रजनन अंगों को लेकर भी रहता है तथा इस सन्दर्भ में वह अपने अन्दर सिर्फ नकारात्मक खयालों में ही खोया हुआ रहता है, अपनी पौरूषेय शक्ति पर विश्वास नहीं कर पाता है, संकोची स्वभाव का हो जाता है और प्रायः इस बात को लेकर चिन्तित रहा करता है कि वह अपनी महिला पार्टनर को सेक्सुअली सन्तुष्ट कर पाएगा या नहीं!  व्यक्ति के मन में चलने वाला यह प्रश्न उसके अन्दर उसे विभिन्न प्रकार की आशंकाओं के साथ ही भ्रांत धारणाओं के मकड़जाल में भी उलझाए रखता है. और इस तरह के नकारात्मक खयालों की वजह से वह अनावश्यक रूप से तनावग्रस्त हो जाता है तथा इस वजह से वह मानसिक रूप से इरेक्टाइल डिस्फंक्शन जैसे गम्भीर यौन-रोग का शिकार हो जाता है.


मनोवैज्ञानिक इरेक्टाइल डिसफंक्शन जैसे गम्भीर यौन-रोग से पीड़ित व्यक्ति को चाहिए कि वह तत्काल अपने जीवन में नकारात्मक खयालों से ऊपर उठकर अपनी जीवन-शैली में अनुकूल व सकारात्मक परिवर्तन लाने का भरपूर प्रयास करे जिससे उसका यौन-जीवन बेहतर स्थिति को प्राप्त हो सके.


उसे चाहिए कि वह प्रतिदिन नियमित रूप से योग, ध्यान और व्यायाम करने की कोशिश करे ताकि वह शारीरिक रूप से एक सक्रिय ऊर्जा को प्राप्त कर सके क्योंकि शारीरिक सक्रियता व्यक्ति के यौन-जीवन लिए अत्यन्त आवश्यक होती है क्योंकि इससे व्यक्ति के शरीर के सभी भागों में नियमित रूप से अनुकूल रक्त-प्रवाह पर्याप्त मात्रा में प्रवाहित होता रहता है और यह व्यक्ति को शारीरिक रूप से फिट बनाए रखने में भी अपनी अत्यन्त ही महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है.


मनोवैज्ञानिक इरेक्टाइल डिसफंक्शन जैसे गम्भीर यौन-रोग का प्रभाव उन व्यक्तियों में अधिक पाया जाता है जिनमें शारीरिक सक्रियता का घोर अभाव होता है. शारीरिक सक्रियता के अभाव में व्यक्ति शिथिल हो जाता है, अनावश्यक रूप से मोटापा का शिकार हो जाता है, उसमें हृदय रोग से संबन्धित समस्याएं घर करने लगती हैं, वह उच्च रक्तचाप का शिकार हो जाता है और ऐसी सारी परिस्थितियां व्यक्ति के लिंग को बहुत ही बुरी तरह प्रभावित करती हैं जिससे व्यक्ति के लिंग में अनुकूल तनाव व पर्याप्त कठोरता का सर्वथा अभाव हो जाता है और वह लाखों कोशिशों के बावजूद किसी भी स्थिति में अपनी महिला पार्टनर के साथ सेक्स-सम्बन्ध स्थापित करने में पूरी तरह असमर्थ हो जाता है इसलिए व्यक्ति के लिए शारीरिक रूप से सक्रिय होना नितान्त आवश्यक है. अगर व्यक्ति को अपनी दैनंदिनी में शारीरिक श्रम की आवश्यकता नहीं होती बल्कि मानसिक श्रम ही करना पड़ता है तो उस व्यक्ति को चाहिए कि जितना सम्भव हो सके उतना तेज गति से पैदल चलने की कोशिश अवश्य करे क्योंकि तेज गति से दौड़ने या तेज चलने के साथ ही प्रतिदिन नियमित रूप से योग, ध्यान और व्यायाम को अपनी जीवन-शैली में शामिल करने से व्यक्ति मोटापा, उच्च रक्तचाप और अनावश्यक तनाव से स्वयं को दूर रख पाने में तो कामयाब हो ही सकता है और इसी बहाने वह शारीरिक सक्रियता को भी प्राप्त कर पाने में सक्षम हो सकता है.


कहने का तात्पर्य यह है कि अगर व्यक्ति अपनी जीवन शैली में आवश्यक और अनुकूल परिवर्तन कर अपने-आपको संयमित दिनचर्या और अनुकूल आहार-व्यवहार के सांचे में ढालने का प्रयत्न नियमित रूप से करे तो वह इस गम्भीर यौन-रोग के प्रभाव पर नियन्त्रण पाने में समर्थ हो सकता है.


इस गम्भीर यौन-रोग से निजात पाने के लिए व्यक्ति को चाहिए कि वह नियमित रूप से अपने जीवन में स्वस्थ, संतुलित, स्वीकृत और विटामिनयुक्त पौष्टिक आहार को ही ग्रहण करे क्योंकि इससे शरीर को भरपूर ऊर्जा की प्राप्ति होती है जिससे व्यक्ति के शरीर में रक्त-संचार पर्याप्त मात्रा में प्रवाहित होता है और इससे व्यक्ति के यौनांगों में भी रक्त-प्रवाह को अनुकूल बनाए रखने में अत्यन्त ही महत्वपूर्ण सहायता प्राप्त होती है. पौष्टिक और संतुलित आहार व्यक्ति की जीवन-शैली की विभिन्न समस्याओं जैसे :- मोटापा, मधुमेह, तनाव के साथ ही अवसादग्रस्त होने के जोखिमों को भी कम करता है इसलिए व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने प्रतिदिन के आहार में फल, सब्जियां और साबुत अनाज को ही नियमित रूप से शामिल करे परन्तु रेड मीट और रिफाइंड अनाज जैसे खाद्य पदार्थों का सेवन करने से बचे या इसका उपयोग कम करे क्योंकि इससे इस रोग से सम्बंधित खतरों में बढ़ोतरी होने की संभावनाएं विकसित होती हैं. किसी अन्य प्रकार की शारीरिक व्याधियों की वजह से उसके इलाज हेतु नियमित रूप से ली जानेवाली विभिन्न प्रकार की दवाओं के सेवन से भी व्यक्ति का लिंग बहुत ही बुरी तरह प्रभावित हो जाता है.


मनोवैज्ञानिक इरेक्टाइल डिस्फंक्शन के लिए पोर्न फिल्मों की भी बड़े पैमाने पर बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि पोर्न फिल्मों को देखने का सबसे बुरा प्रभाव व्यक्ति के लिंग पर ही पड़ता है. पोर्न फिल्मों को देखने के बाद जब व्यक्ति वास्तविक जीवन में अपनी महिला पार्टनर के साथ सेक्स-सम्बन्ध स्थापित करने की प्रक्रिया में शामिल होता है तो वह उस तरह परफॉर्म नहीं कर पाता है जैसा कि उसने पोर्न फिल्मों में देखा हुआ होता है. वह इस बात को स्वीकार ही नहीं कर पाता है कि पोर्न फिल्मों में फिल्माए गए दृश्यों का वास्तविकता से कुछ भी लेना-देना नहीं होता है और इस प्रकार वह नहीं चाहते हुए भी अपने-आपमें कम आत्मसम्मान का अनुभव करने लगता है और अनावश्यक रूप से चिन्तित रहने लगता है तथा व्यर्थ के तनाव से भी ग्रसित हो जाता है जिससे व्यक्ति का लिंग बहुत ही बुरी तरह प्रभावित हो जाता है साथ ही उसके लिंग में अनुकूल तनाव और आवश्यक कठोरता का सर्वथा अभाव भी हो जाता है जिससे उत्पन्न समस्याओं के मकड़जाल में उलझकर वह व्यक्ति नहीं चाहते हुए भी अनावश्यक रूप से मनोवैज्ञानिक इरेक्टाइल डिस्फंक्शन का शिकार होकर अपनी जिन्दगी को तबाह व बरबाद कर डालता है. इसलिए किसी भी व्यक्ति के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह अपनी जिन्दगी में अपने-आपको पोर्न फिल्मों से सर्वथा दूर रहने का भरपूर प्रयास अवश्य करे ताकि वह मनोवैज्ञानिक इरेक्टाइल डिस्फंक्शन का शिकार होने से सदैव बचा रह सके.


इस गम्भीर यौन-रोग से पीड़ित अधिकांश व्यक्ति अपनी इस समस्या को किसी के भी साथ शेयर करने में काफी झिझक और शर्मिंदगी महसूस करते हैं और वह स्वयं ही किसी अन्यान्य स्रोतों से प्राप्त जानकारियों के आधार पर अस्वीकृत दवाओं का सहारा लेना शुरू कर देते हैं जिसका लम्बे समय तक सेवन करने से व्यक्ति इस गम्भीर बीमारी से सम्बन्धित और भी बहुतेरी समस्यायों के मकड़जाल में बहुत ही बुरी तरह उलझ कर रह जाता है तथा इससे उसके समग्र स्वास्थ्य को भी काफी हद तक नुकसान पहुंचता है.


ऐसी अवस्था में इस गम्भीर यौन-रोग से पीड़ित व्यक्ति के लिए यह नितान्त रूप से आवश्यक हो जाता है कि वह अज्ञात पारिवारिक व सामाजिक भय के साथ ही झिझक, शर्मिंदगी और सहज संकोच को त्यागकर किसी कुशल यौन-रोग विशेषज्ञ से अवश्य सम्पर्क करे और सम्बन्धित समस्याओं को लेकर निःसंकोच होकर खुलकर बात करे ताकि उनके अनुकूल परामर्श और उनकी कुशल चिकित्सा से व्यक्ति अपनी इस गम्भीर समस्या से निजात पाने में सफल हो सके.


संयमित दिनचर्या, संतुलित व स्वस्थ आहार-व्यवहार, शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक सक्रियता, प्रतिदिन नियमित रूप से योग, ध्यान और व्यायाम, गम्भीर रोगों पर नियन्त्रण हेतु प्रतिबद्धता, सुखद नींद की प्राप्ति हेतु उपायों को अपनी दिनचर्या में शामिल कर व्यक्ति प्रारम्भिक रूप से इस रोग पर नियन्त्रण पाने में कामयाब हो सकता है और इस रोग से निजात पाने की संभावनाएं भी बढ़ सकती हैं परन्तु इस रोग की गम्भीरता की वजह से इसके लिए एक कुशल यौन-रोग विशेषज्ञ से सलाह व परामर्श लेना नितान्त आवश्यक है क्योंकि उन्हीं की उचित सलाह से पीड़ित व्यक्ति एक बार फिर से अपनी जिन्दगी को नए रस से सराबोर कर उसे खुशनुमा बनाने में सफल हो सकता है तथा इसके साथ ही पुनः अपनी जिन्दगी में यौन-सुख का परम आनन्द प्राप्त कर पाने में भी सक्षम हो सकता है. 

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